वे दो हैं. दोनों के बीच आजकल एक आविष्ट हवा है. वह उसे भी छूती है, इसे भी. लेकिन पहल कौन करेगा? सारी ज़िम्मेदारी उस दरमियानी हवा की ही तो नहीं है. कहीं ऐसा न हो कि दोनों ठिठके रहें और बीच में निर्वात आ जाए.
प्यार में पहल कौन करेगा
प्रेमी एक-दूसरे की ओर देखते हैं
मौसम एक-दूसरे से हाथ मिलाते हैं
साथ चलते हैं कुछ दूर तक इसी तरह
फिर एक विदा लेता है
और इस तरह कि अपनी याद भी नहीं छोड़ता
प्रेम भी प्रतीक्षा करता है
दोनों प्रेमियों की ओर टकटकी लगाए
किसके कन्धे पर पहले किसका सिर टिकेगा
प्रेम दूरी से नहीं
देरी से डरता है
वह घटित होना चाहता है
और सिर्फ स्मृति में नहीं
इस उधेड़बुन में नहीं कि
प्यार में पहल कौन करेगा ?
वे तमाम प्रेम जो सिर्फ कल्पनाओं में घटित होकर रह गए; जिनमें शब्द कन्नी काट गए; जिनका घर सिर्फ यादों में बन पाया अपना हिसाब माँगने किसी असावधान पल में औचक चले आते हैं. उन्हें जवाब देना मुश्किल होता है.