प्रेम के तहखाने से गुजरते हुए / विपिन चौधरी
हर बच्चे की याद में
एक छड़ी-मास्टर और
हर जहन में
प्रेम का एक
तहखाना होता है
जहाँ भूला-भटका प्रेम
यादों की गर्म भट्टी पर पकता है
बिछड़े हुए प्रेम की यादों को इतना कुरेदा जाता है
कि उसके कोयले हमेशा सुलगते रहते हैं
उन कोयलों को उसी अवस्था में ढाँप कर
सब अपने काम-काज में गुम हो जाते हैं
और जब लौटते हैं तो फिर
सुलगते कोयलों पर हवा करने बैठे हैं
इस तरह यह शगल अपनी पकड़ हमेशा बनाए रखती है
हालांकि प्रेम अब इतनी दूर जा चुका है कि
उस तक यादों की रंगीन पतंगों की सहानुभूति से ही पहुंचा जा सकता है
और
'खुदा के हाथों में है बंदे की तकदीर' से
कदमताल करते हुए
बंदा अपनी यादों की कमान को
मजबूती से थामे रखता है
प्रेम की ध्यानावस्था में दिन-रात
यादों का जाप चलता है
वो प्रेम की मधुर सांठ-गाँठ
वो चुहलबाजियाँ
वो कभी ना बोलने की कसमें
और रेल-पटरी पर लेट मरने की झूठी मक्कारियां
प्रेम की बाजीगीरी भी अद्भुत है
संवेदना में ना बहे तो प्रेम भी एक
गोरखधंधा है
जहाँ ब्लैक एंड व्हाइट में फर्क मिट जाता है
हर साल प्रेम में पड़ने वालों के हाथों में भी
प्रेम की एक ही रेखा खींची होती है
फिर भी प्रेम के दुर्लभ खुदाओं की नाजुक खुदाई में
दखल ना देते हुए
उन्हें प्रेम के लिए लंबा अवकाश देना चाहिए
ताकि
प्रेम के इन नामचीन खुदाओं पर शोध कर
प्रेम के नकलची प्रकाश में आ सकें।