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प्रेम के पांथ वास में आज / सुमित्रानंदन पंत
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प्रेम के पांथवास में आज
मस्त का पहना मैंने ताज!
आत्म विस्मृति, मदिराधर पान
यही मेरा जप-ज्ञान!
विश्वमय का जो विशद निवास
व्याप्त उसमें मेरे चिर प्राण,
उच्च मस्तक मेरा आकाश,
गात्र ब्रह्मांड महान!