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प्रेम के बारे में / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
पहले दुख बाज़ार में
मुफ़्त मिलते थे
अब उनकी क़ीमत अदा
करनी पड़ती है
उसमें भी मिलावट बढ़
गई है
सुखी लोग अपने सुख से
ऊबकर दुख का स्वाद
चख़ने लगे हैं
यह बाज़ार है, जानेमन !
यहाँ कोई भी चीज़ शुद्ध
नहीं है
बुख़ार में भी मिलावट है और
खाँसी में वह शिद्दत नही रही
यह बात मैं तुम्हारे प्रेम के
बारे में भी कह सकता हूँ
मेरी जान !