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प्रेम को मनकों सा फेरता मन-४ / सुमन केशरी
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कभी ले चलो न चंबल-तट पर
मुझे प्रिय
तुम नहीं जानते
मैंने तुम्हें पहली बार
वहीं विचरते देखा था
एकाकी मन
तुम नहीं जानते
तुम्हे पिछुआती...खोजती ...पुकारती
जाने कब से खड़ी हूँ मैं
एकाकी तन
मुझे मुझसे ही मिलवा दो न
चंबल-तट पर
मेरे प्रिय...