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प्रेम को मनकों सा फेरता मन-५ / सुमन केशरी
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उस जल तक
जिसमें पकी थी कभी रसोई इस पार
और जिसे पी रहा था एक शेर उस पार
उसी समय जब खाना सींझ रहा था
चूल्हे पर इस पार
उस जल तक
मैं जाना चाहती हूँ तुम्हारे संग
प्रिय
देखो बस कुछ कदमों की दूरी पर बहता है वह जल...
सच में क्या?
सच में क्या?
सच में क्या?