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प्रेम कौर मनैं तेरे ओड़ की चिन्ता भारी होगी / मेहर सिंह

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जब इकतालीस के सन में सिंगहापुर की त्यारी होगी
प्रेम कौर मनैं तेरे ओड़ की चिन्ता भारी होगी।टेक

डीपू म्हैं तै चाल पड़े हम टेशन उपर आगे
एक गौरा एक मेम मिली वे दो दो हार पहरागे
कड़ थेपड़ कै दी शाबासी गाड़ी बीच बैठागे
गाड़ी नैं जब सिटी मारी हम बालक थे घबरागे
अठारहा दिन के अरसे म्हं म्हारी तबीयत खारी होगी।

एक जहाज मनैं ईसा देख्या जिस म्हं बसता गाम
एक औड नैं टट्टू घोड़े रंगरूटा का काम
एक ओड़ नैं बिस्तर पेटी माहें माल गोदाम
जहाज के उपर चढ़कै देख्या सिर पै दिख्या राम
बैठे बैठे बतलावै थें घरां रोवंती नारी होगी।

इसे देश म्हं जा छोड़े जड़ै मोटर रेल नहीं सै
कई किसम के मिलै आदमी मिलता मेल नहीं सै
ब्याह करवा कै देख लियो जिसनै देखी जेल नहीं सै
नौकरी का करणा छोर्यो हांसी खेल नहीं सै
साढ़े तीन हाथ की काया थी या भी सरकारी होगी।

हम आये थे लड़न की खातर पहाड़ी ऊपर चढ़गे
दम दम करकै हुई छमा छम आगै सी नै बढ़गे
सी.ओ. साहब नैं सीटी मारी हम मोर्चे म्हं बड़गे
और किसे का दोष नहीं करमां के नक्शे झड़गे
घर कुणबे तैं दूर मेहरसिंह मोटी लाचारी होगी।