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प्रेम कौ अनुपात आखिर कैसैं आँकौ जायगौ / उर्मिला माधव

प्रेम कौ अनुपात आखिर कैसैं आँकौ जायगौ,
यों बताऔ, मन के भीतर कैसैं झाँकौ जायगौ...

पीर कौ अनुमान अब तक कौन कर पायौ कहौ,
एक ही लठिया ते कैसे प्रेम हाँकौ जायगौ...

आँख के आँसुंन ऐ तौ तुम हाथ ते ढकि लेओगे,
घाव की दुनियाँ कौ हिस्सा कैसैं ढाँकौ जायगौ...

जिंदगी भर राख चूल्हे की लगी रई हाथ में
जे बताऔ और कब तक रेत फांकौ जायगौ...

झालरी, झूमर सजा केँ, देह सुन्दर कर लई,
कौन खन जे भाग मोतिन संग टाँकौ जायगौ?