भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम गली में जाकर देखो / शिवम खेरवार
Kavita Kosh से
प्रेम गली में जाकर देखो, बासंती-सा फाग मिलेगा,
राधा की बोली पाओगे, मीरा का अनुराग मिलेगा।
गुंजित होते स्वर अधरों पर,
अपनापन गुनगुना रहे हैं,
कोयल, मोर, पपीहे मिलकर,
राग भैरवी सुना रहे हैं,
कान्हा की बंशी का तुमको, हर उपवन में भाग मिलेगा।
नव नूतन से दृश्य खिलेंगे,
जब मन के दरवाजों पर,
दिल की धड़कन स्वतः करेगी,
नृत्य मधुर आवाज़ों पर,
नेह वृष्टि में भीगोगे जब, अंतर्मन बेदाग मिलेगा।