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प्रेम गली है साँकरी / मोहन सगोरिया
Kavita Kosh से
अन्त वही अथ
प्रेम वही पथ
वही ठिकाना
कहाँ को जाना
वही, वही था
वही नहीं था
मुझसे मिलकर
ख़ुद को पाकर
मैं ही मैं था
वो ही वो था
देख रहा था
नज़र बचाकर।