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प्रेम चरचा है अरचा है कुल नेमन रचा है / देव

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प्रेम चरचा है अरचा है कुल नेमन रचा है
 
चित और अरचा है चित चारी को ।
छोड़्यो परलोक नरलोक बरलोक कहा
 
हरष न सोक ना अलोक नर नारी को ।
घाम सीत मेह न बिचारै देह हूँ को देव
 
प्रीति ना सनेह डरु बन ना अँध्यारी को ।
भूलेहू न भोग बड़ी बिपति बियोग बिथा
 
जोगहू ते कठिन सँजोग परनारी को ।


देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।