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प्रेम जिजीविषा का विकास है / रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
प्रेम दिल की पुकार है
हृदय का विस्तार है
स्वप्निल संसार है
रस की फ़ुहार है
तन-मन झूम जाता है
गीत बन जाता है|
प्रेम जिजीविषा का विकास है
जीवन का प्रकाश है
अधरों का उल्लास है
रागात्मकता का विलास है
मन-मयूर नाच उठता है
गीत बन निखरता है|
प्रेम मन का विश्वास है
जीवन की मिठास है
तीखी तकरार है
मीठी मनुहार है
रोम-रोम लहलहाता है
गीत बन जाता है|
शूल कहीं चुभता है
मर्म चीख उठता है
मीत याद आता है
दर्द और भी बढ जाता है
अन्तस गुनगुनाता है
गीत बुन जाता है|
बसन्त रितु का प्रसार
नवयौवना का विरह श्रुंगार
प्रिय का इन्तज़ार
विरहणी की अश्रुधार
दर्द छलक जाता है
गीत बन-संवर जाता है|