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प्रेम तो प्रेम है / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
पंछियों की तरह उड़ सको तो उड़ो
प्रेम तो प्रेम है मान बंधन नहीं
तोड़ दो या रखो कुछ कहूँगी नहीं
जो करो, दिल तुम्हें सौंप मैंने दिया
मुझको मालूम है आओगे लौट कर
है तुम्हारा ठिकाना यही दिल पिया
तुम करो प्यार, चाहत रही है मगर
मैं करूँगी कभी प्राण! अनबन नहीं
गुनगुनी धूप- सी साथ में मैं रहूँ
प्राण! आगोश में तुम खिलो पुष्प-सा
अपनी साँसों से खुद बाँध लो तुम मुझे
मैं तुम्हारी कहाऊँ पिया राधिका
प्रेम में बाँध रक्खूँ मुझे हक़ नहीं
छींनने से मिला है समर्पण नहीं
हों कसमें या रस्में नहीं चाहती
प्यार मिलता रहे, बस यही चाह है
जानती हूँ पिया, प्रेम के दर्द को
प्रेम तो मुश्किलों से भरी राह है
मैं तुम्हारे लिए हूँ अडिग पंथ पर
जो डिगे प्रेम से वह अपावन नहीं।