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प्रेम बिना जे जीवन जीयै / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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प्रेम बिना जे जीवन जीये
लोरोॅ में माहुर लै पीयै।
सब कुछ दिखै, नै देखै कुछुवो
होशो छै, बेहोशो होनै,
नींदोॅ में जगले-जगले रं
होलोॅ छै जों जादू-टोने;
दहरोॅ छै सौंसे ठो काया
तहियो बैठी ओकरा सीयै।

सब कुछ सुनै, सुनै नै कुछुओ
बोलै छै सब चुप रहियो केॅ,
कहै, कहाँ की कहलैं ही छी
ओर-अंत सब्भे कहियो केॅ;
धुआँ-धुआँ मन के प्रकाश ठो
जलै जना कि हर क्षण दीयै।

प्रेम अगर जों अमृत छेकै
यही हलाहल भी बनलोॅ छै,
कभी धजा रं जों फहरै छै
तेॅ भालो रं ई तनलोॅ छै;
केकरोॅ वश में कटियो टा की?
केकरा छौड़ौं; केकरा लीयै।