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प्रेम मिलन / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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तोंय कŸाोॅ हाँक लगावोॅ, हम्में नै सुनभौं
हम्में तेॅ प्रेम मिलन में डूबलोॅ रहभौं ।
ई हमरोॅ मिलै के बेरा छेकै
यै बखती कोय कैन्हें अइतै,
हों डूबलोॅ छी रास रंग में
कोय खींची केना लै जइतै,
कŸाोॅ जोर लगावोॅ तोहें, हम्में काही नै जैभौं।
ऊ मचमच करनें आवै छै
पायल रोॅ झंकार सुनाबै छै,
दुख में डूबलोॅ बोझिल मन रोॅ
सब बोझ हरी वें लै छै,
ई सुख छोड़ी बोलोॅ कांही केना हम्में जैभौं।

मदभरलोॅ यौवन रोॅ प्याला
केनां छोड़ी हम्में जैबेॅ
बस जाम आखिरी पीयेॅ देॅ
फेरू साथ तोरोॅ हम देबै।
सभ्भे डूबलोॅ छै अपना में, हम्मीं आबी मनैभौं।