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प्रेम में ज़ैब्रा क्रौसिंग होना / जोशना बनर्जी आडवानी
Kavita Kosh से
कितना सरल है
डींगे मार पाना खुद की बेशर्मियों पर
कितना कठिन है
खुद की खामोशियों के जोखिम उठाना
कितना सरल है
अलग़रज़ उबासियों के फ़सल उगाना
कितना कठिन है
चौकन्ना रह कर इज़्ज़त की खपरैल बनाना
कितना सरल है
मौलवी,पादरी और जनेऊधारी बन जाना
कितना कठिन है
भस्म कर देना मकसदों के परमाणुओं को
कितना सरल है
पहाड़ो की छाती से फ़ूटा हुआ पानी पीना
कितना कठिन है
इंग्लिश कैफे मे सौंफ और मिश्री का मिलना
बहरहाल
सरल और कठिन से परे
एक नैमत है प्रेम में ज़ैब्रा क्रौसिंग हो जाना
थम जाना इस असीमित ब्रहमाण्ड में
बिछ जाना दुनिया भर के कारोबार के नीचे