प्रेम में पड़ी लड़की
अपने में निर्लिप्त
बतिया रही है देर से मोबाइल पर
बस स्टॉप की असुविधा को ठेंगा दिखाते हुए
रास्ता उसे घूर रहा है
गोया जैसे वह घूरे पर खड़ी हो!
हवा में बेपरवाही से लहरा रहा है उसका दुपट्टा
किसी अजान विजय पताका की तरह
और उसकी महक
अफ़ीम के टोटे की तरह फैल रही है।
प्रेम में पड़ी लड़की नहीं जानती
उसकी अतिरिक्त सतर्कता
लापरवाही में कब हो जाती है तब्दील
दुनिया अनुभवी है
ताड़ लेती है
अगल-बगल के बंद दरवाज़ों वाले घरों में खिड़कियाँ हैं
दरवाज़ों से बड़ी खिड़कियाँ हैं
लड़की भूल गई थी
क्या-क्या याद रखे प्रेम में पड़ी लड़की!