प्रेम में बड़े बदलाव
कितनी आसानी से कर लिए जाते हैं
मानों हम उन्हीं की प्रतीक्षा में थे
कि कब वह हो और हम आज़ाद हों
मानों प्रेम हमारे लिए न होकर
उन बदलावों के लिए हुआ था
जैसे प्रेमी का बदलना
प्रेम का मृत हो जाना
संवेदनाओं की माला का बिखर जाना
और मन का भर जाना
समस्त आशाओं का
निराशाओं में तब्दील हो जाना
यह बदलाव सहजता से
आ जाते हैं और
असहज कर जाते हैं
प्रेम के समग्र को
विकृत कर देते हैं
प्रेम के निराकार को
प्रेम में जो अक्सर मुश्किल होता है
वह है छोटे बदलाव लाना
मसलन अपने अहम को
हम के लिए भुला देना
उन टूटी कड़ियों को जोड़ना
जिन्हें अक्सर उपेक्षा की
जंग खा जाती है