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प्रेम में बुद्ध हो जाने दो ज़रा / ज्योति रीता
Kavita Kosh से
तनिक रुको
समाप्ति से पहले
प्रेम में बुद्ध हो जाने दो ज़रा
ध्वस्त हृदय को प्रेम में
ढह जाने दो ज़रा
अश्रु की धारा प्रेम में
बह जाने दो ज़रा
वापसी ना होगी फिर कभी
प्रेम में बागी हो जाने दो ज़रा
बाबली हूँ प्रेम में
वीरगति पा जाने दो ज़रा
रिहाई ना होगी अब मेरी
रूह में घुल जाने दो ज़रा
रंच मात्र भी रंज नहीं
बस ज़ार-ज़ार हूँ प्रेम के पीर में
रफ़ू हो जाने दो ज़रा
यदा-कदा हिलोरे लेगा मन
यादाश्त छिन जाने दो ज़रा
प्रेम बहुत गहरा है
यू धरासाई ना होगा
मोक्ष का सबब बन जाने दो ज़रा
हठ ना करो
तनिक रुको
प्रेम में बुद्ध हो जाने दो ज़रा॥