भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम रस सागर नागरि राधा / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम-रस-सागर नागरि राधा।
चरन चारु नख-चंद्र-चंद्रिका हरत सकल तम-बाधा॥
सुमिरत तुरत जरत बहु जनमनि के अगनित अपराधा।
मिलत प्रेम-पीयूष सुदुरलभ, सफल सकल सुचि साधा॥