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प्रेम रस / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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हमरोॅ जवानी तोरोॅ जवानी,
हम्में दीवाना तोहें दिवानी।

देखी केॅ लोग खूब्भेॅ जरै छै,
जेकरा जे आबै छै वहेॅ कहै छै।
प्रेमी-प्रेमिका कही खूब हँसै छै,
प्रेम रस अमष्त की सब्भें पावै छै?
बनतै दुन्हू रोॅ अमर कहानी।

थोड़ोॅ दिन सब्भैं शोर करै छै,
प्रेमी-प्रेमिका ने डोर करै छै।
असली, एक दोसरा पेॅ मरै छै,
दुन्हू तड़पी रात सें भोर करै छै।
ओकरोॅ जिनगी भर करै बखानी,

आवोॅ दुन्हू गूथोॅ फूलमाला,
दुयोॅ बुरा, दुयोॅ मन-भला।
कोय परबाय नै एक्के सलाह,
मन मंदिर "संधि" एक्के ताला।
जिनगी भर रहतै एक्के वाणी,
हम्में दिवाना तोहें दीवानी।