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प्रेम राज्य के सभी विलक्षण / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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प्रेम-राज्य के सभी विलक्षण होते हैं शुभ भोग-विराग।
नहीं समझ में आ सकते वे, जागे बिना शुद्ध अनुराग॥
होते सभी नाम लौकिक कामों के भी, वैसे ही रूप।
होते परम पवित्र किंतु लोको पर सभी विशेष अनूप॥
हर्ष, शोक, आसक्ति, वासना, भय, संकोच, विकलता, काम।
बन्धन, मान, बिलास, रास, सहवास आदि सब होते नाम॥
करना मान, रूठना, रोना, करना तिरस्कार-‌अपमान।
करना तंग, सताना, चुगली, चाटुकारिता कर्म महान॥
मन विकार होता न तनिक पर, नीयत में न कभी कुछ दोष।
दक्षिण-वाम-सभी ये होते लीला के शुचि रस निर्दोष॥
त्याग-पूर्ण निज-सुख-वाछा-विरहित यह प्रेम-राज्य सुविशाल।
पर इसमें न कभी जा पाते प्रकृति जनित विकार क्षण-काल॥
अपने में अपने से अपने ही होते सब भाव-विशेष।
भौतिक समल विकारों का-भावों का रहता कहीं न लेश॥
सभी दिव्य, चिन्मय, भगवन्मय, सभी विकार-रहित पर-भाव।
प्रेमी प्रियतम बने स्वयं प्रभु लीलारत रहते अति चाव॥