प्रेम शब्द है छोटा सा / सोनरूपा विशाल
जाने क्यों लगता है हममें पहले जैसा प्यार नहीं।
रिश्ता है लेकिन शायद अब इसका दृढ़ आधार नहीं।
मुझे सोच कर अक्सर कितने ख़्वाब सजाया करते थे
मुझको अपनी हसरत की ताबीर बताया करते थे
अब भी हूँ क्या ख़्वाब तुम्हारा? पूछूँगी हाँ कर दोगे
सारी प्रश्नावलियाँ मेरी आसानी से भर दोगे
लेकिन उत्तर हृदय करे स्वीकृत ऐसे आसार नहीं।
जाने क्यों.....…..................................।
रूहानी छुअनों से वीणा की पावन झंकार बजी
देख देख अभिसार सृष्टि भी दुल्हन जैसी ख़ूब सजी
लेकिन अब तासीर छुअन की बदली बदली लगती है
इसीलिए वीणा भीतर कोलाहल अनुभव करती है
भावों की प्रतिमा तो है लेकिन दिखती साकार नहीं।
जाने क्यों.....…..................................।
मैंने भी तो मुक्त हवा में जैसे बाधाएँ बाँधी
ना ना करते करते तुमसे कितनी आशायें बाँधी
कभी तुनकती, कभी चहकती ख़ुद को समझ न पाती मैं
कभी झील सी हो जाती तो कभी नदी हो जाती मैं
जैसा होना चाहूँ वैसा हो मन पर अधिकार नहीं ।
जाने क्यों.....…..................................।
खोना ही पाने का सबसे बेहतर रस्ता होना था
लेकिन हमको तो पाकर ही इक दूजे को खोना था
किया जाए जो सोच समझ कर,प्यार पराजित होता है
ऐसा रिश्ता अपने ऊपर अपने को ही ढ़ोता है
प्रेम शब्द है छोटा सा पर इसका पारावार नहीं।
जाने क्यों.....…..................................।