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प्रेम साहिल के नाम / कांतिमोहन 'सोज़'

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(यह गजल प्रेम साहिल के नाम)

हौले-हौले ग़म की बदली दिल पे छाती जाए है।
देखना है नाउमीदी और क्या दिखलाए है॥

यास<ref>निराशा</ref> की बे ग़ैरती हमसे बयाँ होती नहीं
चुपके-चुपके दिल के ख़ाली जाम में ढल जाए है।

दिन ढला तो दिल के अन्दर भी अन्धेरा छा गया
है कोई धुन्दला इशारा जो न समझा जाए है।

एक आँधी है जो रुकने का नहीं लेती है नाम
एक नारा है जो कानों से न झेला जाए है।

शोरो-शर से भर गए यारो ज़मीनो-आस्माँ
अब तो ये मंज़र भी आँखों से न देखा जाए है।

ऐसे वीराने में फिर एक बार आएगी बहार
इस तसव्वुर से तबीयत बेतरह घबराए है।

घुप अन्धेरा चारसू है सोज़ लेकिन फ़ितरतन<ref>स्वाभाविक रूप से</ref>
क़तरा-क़तरा नूर<ref>प्रकाश</ref> का पलकों से चुनता जाय है॥

1987-2017

शब्दार्थ
<references/>