भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम साहिल के नाम / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
(यह गजल प्रेम साहिल के नाम)
हौले-हौले ग़म की बदली दिल पे छाती जाए है।
देखना है नाउमीदी और क्या दिखलाए है॥
यास<ref>निराशा</ref> की बे ग़ैरती हमसे बयाँ होती नहीं
चुपके-चुपके दिल के ख़ाली जाम में ढल जाए है।
दिन ढला तो दिल के अन्दर भी अन्धेरा छा गया
है कोई धुन्दला इशारा जो न समझा जाए है।
एक आँधी है जो रुकने का नहीं लेती है नाम
एक नारा है जो कानों से न झेला जाए है।
शोरो-शर से भर गए यारो ज़मीनो-आस्माँ
अब तो ये मंज़र भी आँखों से न देखा जाए है।
ऐसे वीराने में फिर एक बार आएगी बहार
इस तसव्वुर से तबीयत बेतरह घबराए है।
घुप अन्धेरा चारसू है सोज़ लेकिन फ़ितरतन<ref>स्वाभाविक रूप से</ref>
क़तरा-क़तरा नूर<ref>प्रकाश</ref> का पलकों से चुनता जाय है॥
1987-2017
शब्दार्थ
<references/>