भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम सुधा बरसायें / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
गुन गुन गुन गुन करता भौंरा
उपवन उपवन जाता।
कली-कली पर, फूल फूल पर
गीत मिलन के गाता॥
रंग, रुप, गुण धर्म अलग हैं
साम्य नहीं दिख पाता।
फिर भी भौंरा फूलों के संग
कितना नेह लुटाता॥
मस्ती में डूबा सा भौंरा
जैसे सबसे कहता।
मिलकर रहना इस दुनिया में
कितना सुखमय रहता॥
आओ, सीखे भौंरे से हम
मन के भेद मिटायें।
सुखमय बने सभी का जीवन
प्रेम-सुधा बरसायें॥