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प्रेम से इतर कुछ नहीं था उनके पास सखी / राकेश पाठक
Kavita Kosh से
पत्तों पर आचारित है वही शब्द
जो धम्म के मन्त्रों में बुदबुदाये थे बुद्ध ने
उन मन्त्रों के रास्ते ही गुजरे थे
तुम्हारी कोमल इच्छाएं
हर हवा के झोकों के साथ
फड़फड़ाते उन्हीं पत्तों पर
लिखे थे बुद्ध के बीज मंत्र
संघ, शरण और शरणागत के
संचरण से पहले पतन नहीं जानते थे
क्योंकि प्रेम में थे ये पत्ते भी
समाधिस्थ बुद्ध की तरह
विलग ही विछोह का विशद था इनके लिए
सुनों बुद्ध ने पतन जाना ही नहीं
और न ही पतन का मार्ग बताया
उन्होंने प्रेम से अलग कुछ बताया ही नहीं
क्योंकि प्रेम से इतर कुछ नहीं था उनके पास सखी