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प्रेम हृदय को छलता है / गीत गुंजन / रंजना वर्मा
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प्रेम हृदय को छलता है॥
प्रेम पंथ पर अगर चले तो
दुख कलियाँ खिल जाएंगी।
सुख के सपने झड़ जाएंगे
दुख फलियाँ मिल जाएंगी।
अकथ डगर है यह पीड़ा की
दुख में जीवन पलता है।
प्रेम हृदय को छलता है॥
प्रेम हृदय की पीड़ा भर है
तो इसमें है दोष कहाँ ?
किंतु बता दो इसमें मिलता
है किसको परितोष कहाँ ?
अमर प्यास है यह मृगतृष्णा
दीप दिवाना जलता है।
प्रेम हृदय को छलता है॥
कुछ भी हो पर प्रेम ज्वाल में
जलने में भी कुछ सुख है।
भले मिले परिताप किंतु
आशा का संबल सम्मुख है।
छल का यहाँ काम क्या इसमें
तो बस भरी सरलता है।
प्रेम हृदय को छलता है॥