प्रेम — प्रेमियों पर त्रिपद / बैर्तोल्त ब्रेष्त / देवेन्द्र मोहन
वह देखो सारस किस तरह तीर जैसे
आसमान पर चले जा रहे हैं ।
राह में बादलों को साथी बनाए हुए
जो पहले से ही थे वहाँ
एक ज़िन्दगी से दूर दूसरी ज़िन्दगी को जाते हुए ।
सब साथ में एक सम ऊँचाई पर समान गति से
अपनी स्वाभाविकता लिए हुए ।
सारस और बादल एक ही जगह साथ-साथ
विस्तृत आसमानों पर क्षण भर के लिए
गुज़रते बिना टिके एक ही जगह पर
देखते एक-दूसरे को सहमति देते साथ-साथ हौले
से झूमते हवाओं में
साथ-साथ उड़ते हल्के हल्के
हवा शायद उन्हें शून्य में ले जाए।
वे आपस में बने रहें मजबूत एकजुटता के साथ
तो उनका अहित नहीं होने वाला
चाहे उन पर गोलियाँ दागी जाएँ या सामना
करना पड़े तूफ़ान का ।
बेफ़िक्र सूरज या चान्द की पीली रौशनी से
वे यात्रा पर हैं, एक दूसरे की मुहब्बतों में मुब्तिला ।
— तुम किससे भाग रहे हो? - दुनिया से ।
— कहाँ चले हो ?
— कहीं भी ।
तुम पूछते हो ये कब से साथ हैं ?
बहुत समय से नहीं ।
— और ये कब जुदा होंगे ?
— ओह, जल्द ही।
तो प्रेम उन्हें सुरक्षित लगता है जिन्हें प्रेम है ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेन्द्र मोहन