भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम
इस बात से
अनजान थीं
और मैंने भी तुम्हें
कुछ नहीं बताया था

तुम रोती रहीं
और हाथ हिलाती रहीं
मैं तुमसे
प्रेम करते हुए
लौट आया था