भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम / अनुलता राज नायर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने बोया था उस रोज़
कुछ,
बहुत गहरे, मिट्टी में
तुम्हारे प्रेम का बीज समझ कर.
और सींचा था अपने प्रेम से
जतन से पाला था.
देखो!
उग आयी है एक नागफनी...

कहो!तुम्हें कुछ कहना है क्या??