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प्रेम / आकांक्षा पारे
Kavita Kosh से
जो कहते हैं प्रेम पराकाष्ठा है
वे ग़लत हैं
जो कहते हैं प्रेम आंदोलन है
वे ग़लत हैं
जो कहते हैं प्रेम समर्पण है
वे भी ग़लत हैं
जो कहते हैं प्रेम पागलपन है
वे भी इसे समझ नहीं पाए
प्रेम इनमें से कुछ भी नहीं है
प्रेम एक समझौता है
जो दो लोग आपस में करते हैं
दरअसल प्रेम एक सौदा है
जिसमें मोल-भाव की बहुत गुंजाइश है
प्रेम जुआ है
जो परिस्थिति की चौपड़ पर
ज़रूरत के पांसों से खेला जाता है।