भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम / प्रमोद कौंसवाल
Kavita Kosh से
मैंने उसे छुआ
उस तरह
उतनी देर
जैसे पत्ते को छूकर
चुपचाप गिर जाए
ओस की एक बूंद
मुझे पता नहीं था
ओस के गिरने के साथ
इस तरह गिर जाना था
पत्ते को भी