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प्रेम / वर्तिका नन्दा
Kavita Kosh से
मुमकिन है बहुत कुछ
आसमान से चिपके तारे अपने गिरेबां में सजा लेना
शब्दों की तिजोरी को लबालब भर लेना
देखो तो इंद्रधनुष में ही इतने रंग आज भर आए
और तुम लगे सोचने
ये इंद्रधनुष को आज क्या हो गया!
सुर मिले इतने कि पूछा खुद से
ये नए सुरों की बारात यकायक कहां से फुदक आई?
भीनी धूप से भर आई रजाई
मन की रूई में खिल गए झम-झम फूल
प्रियतम,
यह सब संभव है, विज्ञान से नहीं,
प्रेम में आंखें खुली हों या मुंदी
जो प्रेम करता है
उसके लिए कुछ सपना नहीं
बस, जो सोच लिया, वही अपना है।