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प्रेम / सुरेश बरनवाल
Kavita Kosh से
किसी चट्टान की
खुरदुरी सतह पर उभरी
किसी दरार पर
हौले से अपना हाथ यूं रखो
मानो पूछ रहे हो
उससे उसकी खैरियत।
तुम देखना
कुछ वर्ष बाद
वहां कोई कोंपल फूट गई होगी
या फिर
उस दरार में
पानी के निशान होंगे।