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प्रेम / हरीश करमचंदाणी
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प्रेम
अर्थ की गरिमा और पवित्रता के साथ
खड़ा हैं तन कर
मैं चाहता हूँ टाँक दूं उसे
तुम्हारे जूडे में फूल की तरह
उसकी पंखडियों में
खिल रही हैं इच्छाएं
आ रही हैं लगाव की महक
यकीनन चिड़िया चहकना
और हवा बहना नहीं छोड़ेगी
बिना जाने भी
प्रेम की परिभाषा