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प्रेरणा / शैलप्रिया

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मैंने कल
कुछ भाव सुमन चुन लिए
गंगा की तरंगों से
उसकी सुरभि
बिखर गई मेरे आस-पास
मैंने भी गीत गुनगुनाए

एक दिव्य प्रकाश-पुंज से
आंखें कौंध रही थीं मेरी
चमकों से
मस्तिष्क परेशान सा ढूँढ़ रहा था उपमा
मैं उपमाविहीन को मस्तक झुकाए
प्रार्थना में डूब गई
कि एक कविता का जन्म हुआ