भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेसिओसा और हवा का झोंका / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दामासो आलोंसो के लिए

अपनी डफ़ली बजाती हुई
चली आ रही है प्रेसिओसा,
कल्पवृक्षों से सजी,
चमकती रहगुज़र से ।

दूर उठी बहुत पुरानी कोई धुन और
फैल जाती है ख़ामोशी धुन्ध की मानिन्द
मछलियों की गन्ध से लिपटी रात में
मचलता हुआ समुद्र
गीत गाता है ।

पर्वतों की धवल चोटियों की सुरक्षा में
उनींदे वे सिपाही, वहाँ
जहाँ अंग्रेज़ों की रहनवारी है ।
समुद्री बंजारे
बिताने के लिए
अपना ख़ुश और खाली वक़्त
बनाते हैं कुंज,
समुद्री शंखों
और चीड़ की हरी टहनियों से ।
....................

अपनी डफ़ली बजाती हुई
आती है प्रेसिओसा ।

उसे देखते ही उठ बैठता है
कभी न सोने वाला हवा का आलसी झोंका ।

आशीर्वचनों की बरसात करने वाले,
बाँसुरी की मधुर तान में खोए,
नग्न,
संत किस्टोफ़र,
देखते हैं उसे, अचानक ।

"लडकी, मुझे उठाने दे अपने वस्त्र
ताकि देख सकूँ तुम्हें ।
मेरी बुजुर्ग उंगलियों पर खिल जाने दे
अपने गर्भ का नीला फूल ।"

प्रेसिओसा फेंक देती है अपनी डफ़ली
और भागती है बेतहाशा ।
हवा का शिकारी झोंका करता है पीछा
जलती तलवार लिए ।

समुद्र समेटता है अपनी फुसफुसाहटें।
पीले पड़ जाते हैं जैतून के सदाबहार पेड़ ।
गाने लगती हैं
परछाईं की बाँसुरी
और बर्फ़ की सपाट सिल्लियाँ


प्रेसिओसा,
भाग, प्रेसिओसा
कि तुम्हें धर लेगा हरे रंग का झोंका
भाग, प्रेसिओसा
भाग !
देख, किधर से आया वो
अपनी लपलपाती जीभ के साथ
ढलती उम्र का विलासी संत ।

.....................

प्रेसिओसा
भयभीत,
घुसती है उस घर में,
चीड़ के पेड़ों के पार
जहाँ रहता है वह अंग्रेज़ी राजदूत ।

उसकी चीख़ से आतंकित
निकलते हैं तीन रक्षक,
उनके लबादे चुस्त,
टोपियाँ उनकी मंदिरों जैसी ।

अंग्रेज़ उसे देता है
दूध का गर्म प्याला,
और पैमाने भरा ज़िन
प्रेसिओसा जिसे नहीं पीती ।

और जब वह सुना रही होती है रोकर,
उन्हें अपनी दास्तान
हवा का गुस्सैल झोंका,
काटता रहता है
स्लेट की खपरैलें ।


अंग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीकान्त'