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प्लास्टिक के फूल / लाला जगदलपुरी

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शोभा छिटकाते हैं, प्लास्टिक के फूल।
आँखों को भाते हैं, प्लास्टिक के फूल।।

रूप-रंग मिले, मगर, रस नहीं मिला।
कहाँ महमहाते हैं, प्लास्टिक के फूल।।

तितली को, भौंरे को, मधुमक्खी को।
बुला नहीं पाते हैं, प्लास्टिक के फूल।।

बगिया में फूल खिले, और झर गए।
सदा खिलखिलाते हैं, प्लास्टिक के फूल।।

कहाँ है, समर्पण का भाव किसी में।
पास-पास आते हैं प्लास्टिक के फूल।।

छू देखो, पाँखुरी नहीं कोई कोमल।
दूर से सुहाते हैं, प्लास्टिक के फूल।।