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प्लेटफॉर्म / हरीशचन्द्र पाण्डे
Kavita Kosh से
कोई नाम पूछता है तो लगता है
भीतरी जेब का अस्तर काट रहा है
अभी पूछेगा जाना कहाँ है?
भूख है,नहीं खाता सामने ही तली जारही गर्म-गर्म पूड़ियाँ
प्यास होने पर पानी नहीं पीता, चाय नहीं पीता ठंड लगने पर
उकताहट होने पर मैगज़ीनें नहीं पलटता
सबकुछ उपलब्ध है जबकि यहाँ प्लेटफॉर्म पर कोई
जंजीर की दुकान है कि नहीं
ये सच है कि सारी जंज़ीरें ख़रीद कर भी नहीं बाँध सकता मैं
यहाँ की सन्दिग्धता
न ही खींच पाऊँगा
अपने समय से बाहर चलती रेलगाड़ियों को
बस निगाहों से बँधी अटैची को सीट पर बाँध लूँगा
किडनी पर का दबाव हल्का कर लूँगा