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प्लेनेटेरियम / मंजुश्री गुप्ता
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प्लेनेटेरियम के कमरे भर के आकाश में
थाल भर के सूरज के चारों तरफ घूमती
प्लेट के बराबर पृथ्वी!
और उसके भी चारों तरफ घूमता
कटोरी भर का चन्द्रमा
अनगिनत तारे ...
ब्रह्मांड और समय के अनंत विस्तार में
अपने अस्तित्व को ढूंढती मैं...
कहाँ हूँ मैं ?
और कहाँ हैं मेरी समस्याएं?
जिनके लिए मैंने
आकाश सिर पर उठा रखा है!
