फँस रही है बेदाव में, दाव बिना लाचार ।
पाँचों पँजों में पड़ी, आठों आठों सार ।।
आठों आठों सार दाव देता ना फाँसा ।
बाजी बीती जय फुसे मन की अभिलासा ।।
गंगादास के दाव देख दुनिया हँस रही है ।
पौबारा दे गेर नरद बेबस फँस रही है ।।
फँस रही है बेदाव में, दाव बिना लाचार ।
पाँचों पँजों में पड़ी, आठों आठों सार ।।
आठों आठों सार दाव देता ना फाँसा ।
बाजी बीती जय फुसे मन की अभिलासा ।।
गंगादास के दाव देख दुनिया हँस रही है ।
पौबारा दे गेर नरद बेबस फँस रही है ।।