फटेहाल का ख़ज़ाना / देवेश पथ सारिया
दुनिया के नामचीन फोटोग्राफर
भटकते हैं
भूखे-नंगे लोगों की बस्ती में
और उन अभावग्रस्त लोगो में से
एक चेहरा चुनते हैं
ऐसा चेहरा, जो निर्दिष्ट कर दे
सारी कहानी उस बस्ती की
उसके लोगों की
उसकी जैसी बहुत सी बस्तियों की
युद्ध शरणार्थी,
अकालग्रस्त, दंगा पीड़ित,
नंगे-भूखे बच्चे की दुहाई दे
कार के बाहर हाथ फैलाई औरत
ऐसे ही चंद दृश्य तलाशते हैं वे
उतारकर ले जाते हैं
किसी का जीवन
एक अदद कैमरे में
बदले में दे जाते हैं
एक दिन या
हद-से-हद एक हफ्ते की रोटी
उस फोटो से
कितने ही पुरस्कार
कितना सम्मान-धन
फोटोग्राफर पर बरसता है
पर उस चेहरे को उसका हिस्सा
देने नही जाता वह
कौन माथा-पच्ची करे और क्यों
फटेहाल चेहरे की कहानी नहीं बदलती
निर्दिष्ट बस्ती की कहानी दीगर बात है
भिखारी, दीन-हीन
अपने फटे चीथड़ों में
ख़ज़ाना समाए हैं
जो बेचने की तरकीब जानते हैं
उन्हें लूट ले जाते हैं,
बड़े सस्ते में