भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फरक / किशोर कुमार निर्वाण
Kavita Kosh से
लारलै दिनां
जद जावणो पड़्यो जैसलमेर
थोड़ै सै आंतरै माथै
दीखै ही जकी जमीन
वा पाड़ोसी देस री ही।
उण खेत मांय
काम करता किरसान
पाड़ोसी देस रा हा।
म्हनैं घणो अचंभो हुयो
उण जमीन
अर इण जमीन मांय
कीं फरक नीं हो
उण खेत रा किरसान
अर म्हारै बिचाळै ईज
कीं फरक नीं हो!