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फरक / राजू सारसर ‘राज’
Kavita Kosh से
बेटी नीं चढै तेल
चढै उण रो
जूण अर टाबरपणौं
मन रा मोद
चढै बलि सांपड़तै
बै ’ज्यावै
स्सौ कीं उण रौ
समै री धार भैळौ।
छोरा रूळै
रूळौ !
गळयां में हांडै
हांडौ !
छौरै री उमर बधै
बाधौ !
मायतां नै पण
सुहावै छोरा
छोरां री बढती उमर
नीं पण सुहावैं छोर्यां
अर छोर्यां री बधती उमर
कितौ फरक है
छोरै अर छोरी री
बधती उमर में।