भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फरवरी (98) / हरेराम बाजपेयी 'आश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फरवरी फरवरी यह महीना है फरवरी,
इसके आगे मार्च है, बीच चुका वह जनवरी।
इस माह की विशेषताएँ,
उसमे से कुछ तुम्हें बताएँ,
सबसे छोटा यही महीना,
फिर भी चमके जैसे नगीना,
मौसम की सौगातों की
चादर पर जैसे लगी जरी॥1॥ फरवरी
ऋतुओं का राजा बसंत,
इस माह एक को आया,
आसमान से धरती तक,
प्रकृति में है छाया,
नीला नीला अम्बर है,
धरती हो गई हरी हरी॥2॥ फरवरी

फरवरी फरवरी ...
उपवन में फैला बसंत है,
सुन्दरता इसकी अनंत है,
आमों पर है बोर सलोने,
फूल खिले है कोने-कोने,
फूलों पर उड़ रहीं तितलियाँ,
लगती जैसे स्वर्ण परी॥3॥ फरवरी

मध्यप्रदेश की जीवन रेखा,
नदी नर्मदा कहलाती है,
तीन फरवरी को थी जयन्ती,
जो आनन्द दिलाती है,
माँ अविरल जल देकर भी,
रखती गागर भरी-भरी॥4॥

पावन पर्व पूर्णिमा का है,
इस ग्यारह तारीख को,
महापर्व शिवरात्रि मनाएँ
पच्चीस की रात्री को...
कीर्तन भजन भक्ति से गाएँ
बिछा के आसान और दरी॥5॥

अट्टाइस को होगी जयन्ती,
परम पूज्य स्वामीजी की,
सेवा सत्य एकता की जिसने
शिक्षाएँ दी नीकी नीकी।
रामकृष्णजी परम हंस थे,
कह गए बातें खरी खरी॥6॥। फरवरी

यही महीना सिखलाता है,
प्रकृति से सब प्यार करे,
पढ़ें पढ़ाएँ सब मिल जुलकर,
और समाज उपकार करें,
जिओं और जीने दो सबको,
तबियत हो जाए हरी-हरी
फरवरी फरवरी यह महीना है फरवरी,
इसके आगे मार्च है,
बीत चुका वह जनवरी॥7॥