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फरहरा / पाब्लो नेरूदा

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»  फरहरा

मेरे साथ खड़ी हो!


मुझ से ज़्यादा कोई भी

उस तकिये पर अपना सिर रखे रहना नहीं चाहेगा

जहाँ तुम्हारी पलकें

मेरे लिए दुनिया के सारे दरवाज़े-खिड़कियाँ

बन्द कर देने की कोशिश करती हैं,

वहाँ भी मैं अपने लहू को तुम्हारी मीठी गोद में

सोये रहने देना चाहूंगा ।


लेकिन अभी उठो!

उठो प्रिये,

और मेरे साथ खड़ी हो !...

और हमें साथ-साथ कूच कर देना चाहिए

शैतान के जाल-फ़रेबों से टक्कर लेने के लिए,

टक्कर लेने के लिए उस व्यवस्था से

जो भूख बाँटती है,

टक्कर लेने के लिए संगठित दरिद्रता से


हमें कूच कर देना चाहिए

और तुम, मेरी तारिका, मेरी बग़ल में होगी ।

मेरी अपनी मिट्टी की नवजात,

तुम्हें खोज निकालना होगा

गुप्त झरना

और लपटों के बीच

तुम मेरी बग़ल में होगी--

अपनी वहशी आँखों के साथ

मेरा फरहरा उठाए हुए...