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फरिछ / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

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सगरो कुहरा छै धरती पर
लगै अन्हेरिया रात रे
सनमनाय छै नन्हका/नन्हकी
खोजै सुन्दर प्रात रे॥
गाछौ सें टप-टप चूवै जल
सुखलोॅ छै खैरात रे
फुनगी चमकै मोती-दाना
बाँटै छै सौगात रे॥
प्रात किरणियाँ उगलोॅ आवै
करै अन्हेरिया मात रे
भागेॅ लागलै दूर अन्हेरिया
चम-चम चमकै गात रे॥
डाल हिलावै मलय बयरिया
डोलै पाते-पात रे॥
फुले-फूल भ्रमर मड़रावै
मानै जात न पात रे॥