भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फर्क कांई..? / राजूराम बिजारणियां

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुट्ठी में
जरू
दाब्योड़ी
जूण
छिणक में
सुरसुरा’र
बण जावै
रेत !

पानां री ओळ्या में
पळती प्रीत
जोड़’नै पानैं सूं पानो
हरयो करदयो
हेत!

फरक कांई ?
देख!

अेकै कानी
प्राण बिहुणा

दूजै कानी
म्है’क!!