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फर्ज़ करो ... / नाज़िम हिक़मत / विनोद दास

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फर्ज़ करो, हम बेहद बीमार हैं और ऑपरेशन होना है
कह नहीं सकते कि उस सफ़ेद मेज़ से उठ पाएँगे या नहीं
हालाँकि यह नामुमकिन है कि थोड़ा जल्दी ऊपर उठ जाने को लेकर
हम ग़मगीन न हो जाएँ
फिर भी लतीफ़े सुनते हुए हम हंसेंगे
हम खिड़की से बाहर झाँककर देखेंगे कि कहीं बारिश तो नहीं हो रही
या बेसब्री से करेंगे इन्तज़ार
ताज़ा खबरों की बुलेटिन का
मान लो, लड़ने लायक किसी चीज़ के लिए
हम मोर्चे पर डटे हैं
और उसी रोज़ पहले हमले में
हम औंधे मुँह गिर जाएँ — मुर्दे सा
बेतरह गुस्से से भरे हम यह सब जानते होंगे
फिर भी हम अपनों की मौत
और जंग के नतीज़ों की बाबत फ़िक्र में सूखते ही रहेंगें
जो जंग चलती रह सकती है बरस दर बरस

फर्ज़ करो, पचास साल की उम्र के इर्द - गिर्द
हम क़ैदखाने में हैं
और उसके लोहे के फाटक को खुलने में
अभी अठारह साल और बाक़ी हैं
फिर भी हमें ज़िन्दगी जीनी होगी
बाहरी दुनिया के लोगों, जानवरों, संघर्षों और हवाओं के साथ
मेरा मतलब दीवारों के उस तरफ़ दुनिया के साथ जीने से है

कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है
कि हम कैसे और कहीं भी हों
हमें ज़िन्दगी ऐसे जीनी चाहिए गोया हम कभी मरेंगे ही नहीं

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास