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फर्द / मजीद 'अमज़द'
Kavita Kosh से
इतने बड़े निज़ाम में सिर्फ़ इक मेरी ही नेकी से क्या होता है
मैं तो इस से ज़ियादा कर ही क्या सकता हूँ
मेज़ पर अपनी सारी दुनिया
काग़ज़ और क़लम और टूटी फूटी नज़्में
सारी चीज़ें बड़े क़रीने से रख दी हैं
दिल में भरी हुई हैं इतनी अच्छी अच्छी बातें
इन बातों का ध्यान आता है तो ये साँस बड़ी ही बेश-बहा लगती है
मुझ को भी तो कैसी कैसी बातों से राहत मिलती है
मुझ को इस राहत में सादिक़ पा कर
सारे झूठ मिरी तस्दीक़ को आ जाते हैं
एक अगर मैं सच्चा होता
मेरी इस दुनिया में जितने क़रीने सजे हुए हैं
उन की जगह बे-तरतीबी से पड़े हुए कुछ टुकड़े होते
मेरे जिस्म के टुकड़े काले झूठ के इस चलते आरे के निचे
इतने बड़े निज़ाम से मेरी इक नेकी टकरा सकती थी
अगर इक मैं ही सच्चा होता